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Sunday 20 July 2014

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

कवि परिचय

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
DWARIKA PRSAD MAHESWARI.JPG
जन्म: 01 दिसंबर 1916
निधन: 29 अगस्त 1998
जन्म स्थानग्राम रोहता, आगरा, उत्‍तर प्रदेश
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
क्रौंचवध, सत्‍य की जीत(खंडकाव्‍य), दीपक, गीतगंगा, बाल काव्‍य कृतियॉं: वीर तुम बढे चलो, हम सब सुमन एक उपवन के, सोने की कुल्‍हाड़ी, कातो और गाओ, सूरज सा चमकूँ मैं, बाल गीतायन, द्वारिकाप्रसाद माहेश्‍वरी रचनावली (3 खंडों में: संपादन: डॉ.ओम निश्‍चल, डॉ.विनोद माहेश्‍वर)
विविधटैक्‍स्‍ट बुक:प्‍लानिंग एंड प्रिपेरेशन, उत्‍तर प्रदेश हिंदी संस्‍थान द्वारा बाल साहित्‍य भारती पुरस्‍कार से सम्‍मानित
जीवनीद्वारिका प्रसाद माहेश्वरी / परिचय

शिक्षा और कविता को समर्पित द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जीवन बहुत ही चित्ताकर्षक और रोचक है। उनकी कविता का प्रभाव सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार कृष्ण विनायक फड़के ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में प्रकट किया कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी शवयात्रा में माहेश्वरी जी का बालगीत 'हम सब सुमन एक उपवन के' गाया जाए। फड़के जी का मानना था कि अंतिम समय भी पारस्परिक एकता का संदेश दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने अपनी होर्डिगों में प्राय: सभी जिलों में यह गीत प्रचारित किया और उर्दू में भी एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था, 'हम सब फूल एक गुलशन के', लेकिन वह दृश्य सर्वथा अभिनव और अपूर्व था जिसमें एक शवयात्रा ऐसी निकली जिसमें बच्चे मधुर धुन से गाते हुए चल रहे थे, 'हम सब सुमन एक उपवन के'। किसी गीत को इतना बड़ा सम्मान, माहेश्वरी जी की बालभावना के प्रति आदर भाव ही था। उनका ऐसा ही एक और कालजयी गीत है- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। उन्होंने बाल साहित्य पर 26 पुस्तकें लिखीं। इसके अतिरिक्त पांच पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए लिखीं। उन्होंने अनेक काव्य संग्रह और खंड काव्यों की भी रचना की।
बच्चों के कवि सम्मेलन का प्रारंभ और प्रवर्तन करने वालों के रूप में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का योगदान अविस्मरणीय है। वह उप्र के शिक्षा सचिव थे। उन्होंने शिक्षा के व्यापक प्रसार और स्तर के उन्नयन के लिए अनथक प्रयास किए। उन्होंने कई कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनाकर उन्हे याद करते रहने के उपक्रम दिए। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जैसे महाकवि पर उन्होंने बड़े जतन से वृत्त चित्र बनाया। यह एक कठिन कार्य था, लेकिन उसे उन्होंने पूरा किया। बड़ों के प्रति आदर-सम्मान का भाव माहेश्वरी जी जितना रखते थे उतना ही प्रेम उदीयमान साहित्यकारों को भी देते थे। उन्होंने आगरा को अपना काव्यक्षेत्र बनाया। केंद्रीय हिंदी संस्थान को वह एक तीर्थस्थल मानते थे। इसमें प्राय: भारतीय और विदेशी हिंदी छात्रों को हिंदी भाषा और साहित्य का ज्ञान दिलाने में माहेश्वरी जी का अवदान हमेशा याद किया जाएगा। वह गृहस्थ संत थे।

Thursday 10 July 2014

उपयोगितावाद - Utilitarianism

इस गुलमोहर को काट दो,इसकी जगह पर दूसरा गुलमोहर लगाओ - माँ के इस मनोभाव पर चर्चा करें। सहायता केलिए चित्र का उपयोग करें।


Wednesday 2 July 2014

निमन्त्रण पत्र - एक प्रसन्टेशन (400 പേരിലേറെ ഡൗണ്‍ലോഡ് ചെയ്തെടുത്തിട്ടും ഒരാള്‍ മാത്രം കമന്റ് ചെയ്ത പോസ്റ്റ്)

सातवीं कक्षा की नई पाठ्य पुस्तिका की पहली इकाई के पहले पाठ में प्रवेश कार्य के रूप में एक निमन्त्रण पत्र से छात्रों को परिचय कराना है। इसके लिए एक प्रसन्टेशन।


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गुलमोहर की आत्मकहानी!

जैसे गुलमोहर भी अपनी कहानी सुनता-सुनता मुस्करा रहा था”-मान लें गुलमोहर शाम को वहाँ आए पंछियों को अपनी कहानी सुनाती है। वह क्या - क्या कहेगा?
मेरा नाम गुलमोहर है। मैं पाँच वर्ष पुराना पेड़ हूँ। मुझे यहाँ एक प्यारी बच्ची की माँ ने लगाया था, जिसका नाम मीना है। उसे फूल बहुत अच्छे लगते थे और उसने मुझे इसी उद्देश्य से लगाया कि मैं बड़ा होकर उसे लाल रंग के फूल दूँगा। आज मैं बड़ा हो गया हूँ। चार वर्ष तक मीना ने मेरी बहुत सेवा की। उसके प्रेम के कारण ही मैं आज एक बड़ा वृक्ष बन पाया हूँ। परन्तु चौथे साल के बाद भी मुझ पर फूल नहीं आए।
मीना की माँ मुझे कटवाकर दूसरा लगवाना चाहती थी। मैं स्वयं को भाग्यशाली समझता हूँ कि मीना मेरी संरक्षिका थी। उसने बड़े जतन से मेरा पालन-पोषण किया है। इसी साल मैंने मीना को सुन्दर फूल दिए हैं। इन पाँचों वर्षों में मैंने अपने आसपास के वातावरण को भली प्रकारसे समझा है। मनुष्य कुछ स्वार्थी होते हैं, तो कुछ परोपकारी। मीना परोपकारी लोगों में से एक है। मेरी छाँव में कोई न कोई आकर बैठता है। परंतु सब अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर ही मेरी छाँव के नीचे आते हैं। मुझे बहुत दुख होता है कि वे मुझे प्यार से सहलाते नहीं हैं। मुझे थोड़ा पानी नहीं दे सकते। वे मुझे स्नेह से भरा एक स्पर्श नहीं देते। वे हमें बेजान वस्तु समझते हैं। जिनमें न कोई भाव है न कोई प्यार। इन ५ सालों में मीना के अतिरिक्त मुझे और कोई मित्र नहीं मिला। उसके रहते मुझे किसी से भय खाने की आवश्यकता नहीं है। आज तो उसने अपने मित्रों के साथ मेरा वर्षगाँठ भी मानाया है। इससे बढ़कर खुशी की बात क्या है ?