Sunday 7 December 2014
Friday 15 August 2014
मेहनत का महत्व
मेहनत का महत्व -लघु लेख जीवन में श्रम का विशेष महत्व है । मेहनत वह सुनहरी कुंजी है जो भाग्य के बंद कपाट खोल देती है । परिश्रम ही जीवन की सफलता का रहस्य है । परिश्रम का अर्थ है ‘उद्द्य्म’ अथवा ‘मेहनत’ । परिश्रम वह माध्यम है जो मनुष्य को मनोरथ की मंजिल तक पंहुचाता है । श्रम के मुख्य दो भेद होते हैं- मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम । मनन, चिंतन, अध्ययन मानसिक श्रम है । शरीर के द्वारा किये जाने वाले श्रम को शारीरिक श्रम कहते हैं । जीवन में मानसिक और शारीरिक श्रम दोनों का अपना अपना महत्व है । मानव जीवन में परिश्रम की महिमा असीम है । यही गरीब को राजा और दुर्बल को सबल बना देती है । परिश्रमी व्यक्ति अपना भाग्य-विधाता और समाज का निर्माता होता है । जिस देश के लोग परिश्रमी होते हैं, वह राष्ट्र उतनी अधिक उन्नति करता है । चीन, जापान, अमेरिका आदि इसके उदाहरण हैं ।प्रकृति भी हमें परिश्रम करने की प्रेरणा देती है । चींटियाँ और मधुमखियाँ प्रकृति की प्रेरणा स्त्रोत हैं । आलस्य मनुष्य का बहुत बड़ा शत्रु है । श्रम ही जीवन है, वही मनुष्य का सच्चा मित्र है । इसलिए कहा जाता है ‘श्रममेव जयते’ । |
Thursday 14 August 2014
Saturday 9 August 2014
हम सब सुमन एक उपवन के -2
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Sunday 20 July 2014
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
कवि परिचय
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी | |
जन्म: 01 दिसंबर 1916 निधन: 29 अगस्त 1998 | |
जन्म स्थान | ग्राम रोहता, आगरा, उत्तर प्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | क्रौंचवध, सत्य की जीत(खंडकाव्य), दीपक, गीतगंगा, बाल काव्य कृतियॉं: वीर तुम बढे चलो, हम सब सुमन एक उपवन के, सोने की कुल्हाड़ी, कातो और गाओ, सूरज सा चमकूँ मैं, बाल गीतायन, द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी रचनावली (3 खंडों में: संपादन: डॉ.ओम निश्चल, डॉ.विनोद माहेश्वर) |
विविध | टैक्स्ट बुक:प्लानिंग एंड प्रिपेरेशन, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य भारती पुरस्कार से सम्मानित |
जीवनी | द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी / परिचय |
शिक्षा और कविता को समर्पित द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जीवन बहुत ही चित्ताकर्षक और रोचक है। उनकी कविता का प्रभाव सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार कृष्ण विनायक फड़के ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में प्रकट किया कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी शवयात्रा में माहेश्वरी जी का बालगीत 'हम सब सुमन एक उपवन के' गाया जाए। फड़के जी का मानना था कि अंतिम समय भी पारस्परिक एकता का संदेश दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने अपनी होर्डिगों में प्राय: सभी जिलों में यह गीत प्रचारित किया और उर्दू में भी एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था, 'हम सब फूल एक गुलशन के', लेकिन वह दृश्य सर्वथा अभिनव और अपूर्व था जिसमें एक शवयात्रा ऐसी निकली जिसमें बच्चे मधुर धुन से गाते हुए चल रहे थे, 'हम सब सुमन एक उपवन के'। किसी गीत को इतना बड़ा सम्मान, माहेश्वरी जी की बालभावना के प्रति आदर भाव ही था। उनका ऐसा ही एक और कालजयी गीत है- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। उन्होंने बाल साहित्य पर 26 पुस्तकें लिखीं। इसके अतिरिक्त पांच पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए लिखीं। उन्होंने अनेक काव्य संग्रह और खंड काव्यों की भी रचना की।
बच्चों के कवि सम्मेलन का प्रारंभ और प्रवर्तन करने वालों के रूप में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का योगदान अविस्मरणीय है। वह उप्र के शिक्षा सचिव थे। उन्होंने शिक्षा के व्यापक प्रसार और स्तर के उन्नयन के लिए अनथक प्रयास किए। उन्होंने कई कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनाकर उन्हे याद करते रहने के उपक्रम दिए। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जैसे महाकवि पर उन्होंने बड़े जतन से वृत्त चित्र बनाया। यह एक कठिन कार्य था, लेकिन उसे उन्होंने पूरा किया। बड़ों के प्रति आदर-सम्मान का भाव माहेश्वरी जी जितना रखते थे उतना ही प्रेम उदीयमान साहित्यकारों को भी देते थे। उन्होंने आगरा को अपना काव्यक्षेत्र बनाया। केंद्रीय हिंदी संस्थान को वह एक तीर्थस्थल मानते थे। इसमें प्राय: भारतीय और विदेशी हिंदी छात्रों को हिंदी भाषा और साहित्य का ज्ञान दिलाने में माहेश्वरी जी का अवदान हमेशा याद किया जाएगा। वह गृहस्थ संत थे।
Thursday 10 July 2014
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